Monday 2 September 2013

शेरो शायरी :: सच्चा इश्क

ज़िन्दगी कट रही है राफ्ता-रफ्ता, यादें धुंधली हो रही है राफ्ता-राफ्ता, जो चिराग कभी दिल में जला करती थे उनकी लौ बुझ रही है राफ्ता-राफ्ता। _____________ आँखों में आंसुओं की लकीर बन गई, सोचा नहीं था ऐसी तकदीर बन गई हमनें यूं फेरी थी रेत पर अंगुली और देखा तो तेरी तसवीर बन गई। OPMeena _____________ मैं जब भी मुस्कराना चाहती हूं छीन लेता है मुस्कराहट कोई दर्द निकल जाता है आँसु बन कर आकर दर्द समेट ले कोई या सहारा है दर्द ही मेरा आकर समझा जाय कोई यकीं कर लूंगी मैं उस पर इक बार जो आ जाय कोई। opmeena _____________ प्यार मज़ाक नहीं होता, इसे हंसी में मत टालो यह अपनी पे आयेगा बहुत तड़्पाएगा। इस प्यार का कोई इलाज नही होता, दुआओं का भी असर नही होता यह जब दर्द देता है तब इंसान रोता है। प्यार बहुत मासूम होता है तुम्हे खामोश कर देगा तुम्हे खबर नही होगी तुम्हारी नींद हर लेगा। प्यार कोई छिपा नही सकता, यह खुद बाहर आता है बेशक जुबान नही इसकी यह बहुत शोर करता है। प्यार जीने नही देगा प्यार मरने नही देगा इसका अहसास ही बहुत कमाल होता है। Opmeena _____________ चले आओ न छुपाओ खुद को यूँ रौशनी से चलेआओ खुद में ही न आज उलझ जाओ चलेआओ महफ़िल तोहै बुलबुला सा खो जाताहै भीड़ में तुम भी न खो जाओ चलेआओ देखो है आज अँधेरा,बहुत उस गुलशन में जोखुद की आग में जल पाओ चलेआओ पाने का नाम मोहब्बत,कभी न होताहै खुद को खो कर जो उसे पाओ चलेआओ माना की चाँद तुझसे बेवफाई करताहै जोपूनम रात को तुम चाहो चले आओ लहरें भी तो आती हैं चली जाती हैं तुम भी युहीं न ठहर जाओ चले आओ _____________ रात खामोश है मेरे दिलबरकी तरह बड़ा सुनसान है मेरे रहगुजर की तरह मेरे आंसू से शीशे को क्या मतलब है आईना देख रहा है मुझे पत्थर की तरह मेरी सूरत पे ये जो मायूसी के साये हैं वो ही मुझमें समाई है उदासी की तरह नींद ने आज न आने की कसम खाई है आज फिर नैन बह जाएंगे प्यासे की तरह _____________ कैसे कह दूं कि उसी शख्स से नफरत है मुझे ! वही जो शख्स मेरे ख्वाब तोड़ देता है, वही उन ख्वाबों के होने का पर सबब भी है... मेरी हयात के पुर्जे बिखेरने वाला, मेरी साँसों को सजाने का वो ही ढब भी है... मैं चाहता नहीं पर जिसकी जरूरत है मुझे ! कैसे कह दूं कि उसी शख्स से नफरत है मुझे ! मेरी शिकस्त में है और सफ़र के हौसलों में भी... ख़ुशी में जीत की पैरों के आबलों में भी... वही ज़मीन है पैरों के नीचे, छत भी है.... , वही मिटाने की जुम्बिश-ओ-हरारत भी है... मगर तन्हाई में भी उसकी ही आदत है मुझे कैसे कह दूं कि उसी शख्स से नफरत है मुझे ! Opmeena _____________ बेजान इश्क़ को तेरे इश्क़ ने ज़िन्दा कियाफिर तेरे इश्क़ ने ही इस दिल को तबाह कियातड़प तड़प के इस दिल से आहनिकलती रहीमुझको सज़ा दी प्यार की ऐसा क्या गुनाह कियातो लुट गए हां लुट गएतो लुट गए हम तेरी मोहब्बत मेंअजब है इश्क़ यारा पल दो पल की ख़ुशियाँगम के खज़ाने मिलते हैं फिर मिलती हैं तन्हाईयांकभी आँसू कभी आहें कभी शिकवे कभी नालेतेरा चेहरा नज़र आए मुझेदिन के उजालों मेंतेरी यादें तड़पाएं रातों के अंधेरों मेंतेरा चेहरा नज़र आएमचल मचल के इस दिल से आहनिकलती रहीमुझको सज़ा दी ...अगर मिले ख़ुदा तो पूछूंगा ख़ुदायाजिस्म दे के मिट्टी का शीशे सा दिल क्यूं बनायाऔर उस पे दी ये फ़ितरत केवो करता है मोहब्बतवाह रे वाह तेरी क़ुदरत उसपे दे दी ये क़िस्मतकभी है मिलन कभी फ़ुरक़तहै यही क्या वो मुहब्बतवाह रे वाह तेरी क़ुदरतसिसक सिसक के इस दिल से आह निकलती रहीमुझको सज़ा दी ... _____________ o.p.meena _____________ वो जो तहज़ीब है इनको "जो जैसा है दिखा देना" तेरी नज़रों से सीखा है.. जो तुम न होते तो आइनों का क्या होता! वाह !! _____________ तुम न होते तो आईने महज आईने होते। पैमाने छलकें तो छलकने दो, ख्वाबों को बसाओ आँखों में। _____________ ये सारी नाजुकी जो इनकी परतों ने समेटी है तुम्हारे लम्स से ली हैं ... ! तुम्हारे सादा दिल सा इन्होने अपना भेष डाला है ..! वोजो तहज़ीब है इनको "जो जैसा है दिखा देना " तेरी नज़रों से सीखा है.. जो तुम न होते तो आइनों का क्या होता ! =============================================== जिंदगीकीव्हिस्की ---------------------- मेरी आँखों में डालो न , तुम अपने ख्वाब का टुकडा ... कि जिंदगी फिर छलक जाए मुझ से ... पैमाने में रखी व्हिस्की की तरह जब उसमे बर्फ डलती हैं ...। ================================================ हामिलाउम्मीद ------------------ जल्दही नज़्म एक पैदा होगी जल्द ही अफ़साना किलकेगा दिल के आँगन में… तेरे विसाल की उम्मीद हामिला सी नज़र आतीहै। _____________ मैं हूं परवाना मगर शमा तो हो, रात तो हो, जान देने को हूं मौजूद, कोई बात तोहो। दिल भी हाजिर, सरे तसलीम भी ख़म को मौजूद, कोई मरकज़ हो, कोई किब्ल-ए-हालात तोहो। दिल तो बेचैन है इज़हारे-इरादत के लिए किसी जानिब से कुछ इज़हारे-करामात तो हो। अकबर इलाहबादी खुदा के वास्ते अब बेरुखी से काम न ले, तड़प के फिर कोई दामन को तेरे थाम नले जमाने भर में हैं चर्चे मेरी तबाही के मैं ड़र रहा हूं कहीं कोई तेरा नाम न ले जिसे तू देख ले इक बार मस्त नज़रों से वो उम्र भर कभी हाथों में अपने जाम न ले। ‘साहिर भोपाली’ समझ देख मन मीत पियरवा, आसिक होकर सोना क्या रे, पाया है तो दे ले प्यारे, पाय-पाय फिर खोना क्या रे जब अंखियन में नींद घनेरी, तकिया और बिछोना क्या रे कहे कबीर प्रेम का मारग, सिर देना तो रोना क्या रे। ‘संत कबीर’ दर्द जब भी उभरे मेरे सीने में करार तुझको ना आये जीने में। गम का पहर तुझपे टूटा इस कदर, उम्र कट जाय आँसु पीने में। मौत मांगे मगर, तुझे मौत ना मिले ,जिन्दगी बोझ लगने लगे, तुझे जीने में। तूं चाह कर भी किसी की हो ना सके जैसे अंगूठी होती है नगीने में। तूं तड़पे तो दर्द ऐसी उठे जैसी उठी है आज मेरे सीने में। दर्द जब भी उभरे मेरे सीने में करार तुझको ना आये जीने में।

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